धर्म एवं दर्शन >> ज्ञानयोग ज्ञानयोगस्वामी विवेकानन्द
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स्वानीजी के ज्ञानयोग पर अमेरिका में दिये गये प्रवचन
पूर्णतया संयत मन का प्रकाशपुंज (सर्च लाइट) जब किसी विषय पर डाला जाता है तो वह उसे शीघ्र ही आयत्त कर लेता है। इसे समझना बड़ा ही महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे इस प्रकार की अत्यन्त मूर्खतापूर्ण व्याख्या का निरसन होगा कि एक बुद्ध या ईसा साधारण सापेक्षिक (जागतिक) ज्ञान के सम्बन्ध में क्यों भूल में थे, जैसा कि हम भली भांति जानते हैं कि वे ऐसे थे। उनके उपदेशों को गलत ढंग से प्रस्तुत करने का दोष उनके शिष्यों पर नहीं मढ़ा जा सकता। उनके वक्तव्यों में यह कहना कि एक बात सत्य है और दूसरी असत्य, निरर्थक है। या तो पूर्ण विवरण स्वीकार करो या अस्वीकार करो। 'हम' असत्य में सत्य को कैसे ढूँढकर निकालेंगे?
एक घटना यदि एक बार घटती है, तो वह फिर भी घट सकती है। यदि किसी मनुष्य ने कभी पूर्णता प्राप्त की है तो हम भी ऐसा कर सकते हैं। यदि हम यहाँ अभी पूर्ण नहीं हो सकते तो हम किसी स्थिति में या स्वर्ग में या ऐसी दशा में, जिसकी कि हम कल्पना कर सकें, पूर्ण नहीं हो सकते। यदि ईसा मसीह पूर्ण नहीं थे तो जो धर्म उनके नाम पर चल रहा है, वह भूमिसात् हो जाता है। यदि वे पूर्ण थे तो हम भी पूर्ण बन सकते हैं। पूर्ण व्यक्ति उसी प्रकार से तर्क नहीं करते या वैसा नहीं 'जानते', जैसा हम 'जानने' का अर्थ समझते हैं। क्योंकि हमारा सारा ज्ञान तुलना पर आधारित है और असीम वस्तु में कोई तुलना, कोई वर्गीकरण सम्भव नहीं है। बुद्धि की अपेक्षा मूल प्रवृत्ति कम भूल करती है, किन्तु बुद्धि का स्तर उससे उच्च है, और बुद्धि स्वस्फुरित ज्ञान की ओर ले जाती है। प्राणियों में तीन स्तर की अभिव्यक्तियाँ हैं –
(१) अवचेतन - यन्त्रवत् भूल न करनेवाले;
(२) चेतन - जाननेवाले, भूल करनेवाले;
(३) अतिचेतन - अतीन्द्रिय-ज्ञान-सम्पन्न, भूल न करनेवाले; और उनका दृष्टान्त पशु, मनुष्य और ईश्वर में है।
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