धर्म एवं दर्शन >> ज्ञानयोग ज्ञानयोगस्वामी विवेकानन्द
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स्वानीजी के ज्ञानयोग पर अमेरिका में दिये गये प्रवचन
यह संसार एक ऐसी बटलोई में जल के समान है जो उबलनेवाली हो। उसमें पहले एक बुलबुला उठता है, फिर दूसरा और फिर बहुतसे, और अन्तत: सब उबल उठता और बाष्प-रूप में निकल जाता है। महान् धर्मोपदेशक आरम्भ में उठनेवाले बुलबुलों के रूप में होते हैं, एक यहाँ, एक वहाँ; किन्तु अन्त में हर जीव को बुलबुला होना है और निकल भागना है। नित्य नूतन सृष्टि नया जल लाती रहेगी और सारी प्रक्रिया की आवृत्ति फिर होगी। बुद्ध और ईसा संसार द्वारा ज्ञात दो महत्तम बुलबुले हैं। वे महान् आत्माएँ थीं, जिन्होंने स्वयं मुक्ति प्राप्त करके, दूसरों को बच निकलने में सहायता दी। दोनों में से कोई पूर्ण नहीं था, किन्तु उन पर निर्णय उनके गुणों से करना है, उनकी कमियों से नहीं।
ईसा कुछ छोटे पड़ते हैं, क्योंकि सदैव अपने सर्वोच्च आदर्श के अनुरूप नहीं रह सके और सब से अधिक इसलिए कि उन्होंने स्त्री को पुरुष के साथ बराबर स्थान नहीं दिया। स्त्री ने इनके लिए सब कुछ किया, किन्तु एक को भी धर्मदूत नहीं बनाया गया। उनका सेमेटिक होना ही निस्सन्देह इसका कारण था। महान् आर्यों ने तथा शेष में बुद्ध ने स्त्री को सदैव पुरुष के बराबर स्थान में रखा है। उनके लिए धर्म में लिंगभेद का अस्तित्व न था। वेदों और उपनिषदों में स्त्रियों ने सर्वोच्च सत्यों की शिक्षा दी है और उनको वही श्रद्धा प्राप्त हुई है, जैसी कि पुरुषों को।
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