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कह देना

अंसार कम्बरी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :165
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9580

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६२

दुनिया के हादिसों से क्यूँ घबरा रहे हैं आप


दुनिया के हादिसों से क्यूँ घबरा रहे हैं आप
जो कुछ दिया है आपने वो पा रहे हैं आप

ख़ुद आप अपने आप को बहका रहे हैं आप
जाना किधर है और किधर जा रहे हैं आप

मज़हब ने कब कहा है जो मज़हब के नाम पर
चिंगारियाँ फ़साद की दहका रहे हैं आप

झूठी अगर हुई भी तो बिगड़ेगा कुछ नहीं
दुश्मन की क़सम यूँ ही नहीं खा रहे हैं आप

वो और हैं जो आपकी बातों में आ गये
मैं सब समझ रहा हूँ जो फ़रमा रहे हैं आप

क्या कुछ नहीं दिया है ज़माने ने आपको
कुछ हमको दे दिया है तो झुँझला रहे हैं आप

बस अपनी सीघी राह पे चलता है ‘क़म्बरी’
क्यूँ अपनी टेढ़ी चाल पे इतरा रहे हैं आप

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