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कह देना

अंसार कम्बरी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :165
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9580

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६३

दिन भर की उदासी का यूँ जश्न मनाते हैं


दिन भर की उदासी का यूँ जश्न मनाते हैं
हर शाम ढले हम भी कुछ ख़्वाब सजाते हैं

हम प्यास के मारे तो मल्हार ही गाते हैं
तपते हुये सहरा में सावन को बुलाते हैं

इतिहास बताता है पत्थर ही मिले उनको
जो लोग ज़माने को आईना दिखाते हैं

मायूस दरख़्तों पर आ जाती है कुछ रौनक़
जब शाम ढले पंछी घर लौट के आते हैं

क्या हो गया नदी से लाशें ही निकलती हैं
मछली के लिये जब भी हम जाल बिछाते हैं

ताक़त भी है, हिम्मत भी तलवार उठाने की
फिर भी दुआ की ख़ातिर हम हाथ उठाते हैं

मज़हब ही सिखाते हैं आपस में गले मिलना
मज़हब ही हर इक दिल में दीवार बनाते हैं

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