व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> मेरा जीवन तथा ध्येय मेरा जीवन तथा ध्येयस्वामी विवेकानन्द
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दुःखी मानवों की वेदना से विह्वल स्वामीजी का जीवंत व्याख्यान
गरीबों को शिक्षा प्राय: मौखिक रूप से ही दी जानी चाहिए। स्कूल आदि का अभी समय नहीं आया है। तुम लोग कुछ धन इकट्ठा कर एक कोष बनाने का प्रयत्न करो। शहर में जहाँ गरीब से गरीब लोग रहते हैं, वहाँ एक मिट्टी का घर और एक हॉल बनाओ। कुछ मैजिक लैंटर्न, थोडे से नक्शे, ग्लोब और रासायनिक पदार्थ इकट्ठा करो। हर रोज शाम को वहाँ गरीबों को - यहाँ तक की चांडालो को भी - एकत्र करो। पहले उनको धर्म के उपदेश दो, फिर मैजिक लैंटर्न और दूसरे पदार्थों के सहारे ज्योतिष, भूगोल आदि बोलचाल की भाषा में सिखाओ।
तुम लोगों का अब काम है, प्रांत प्रांत में, गाँव गाँव में जाकर देश के लोगों को समझा देना कि अब आलस्य से बैठे रहने से काम न चलेगा। शिक्षा-विहीन, धर्म-विहीन वर्तमान अवनति की बात उन्हें समझाकर कहो 'भाई, सब उठो, जागो, और कितने दिन सोओगे?' और शास्त्र के महान् सत्यों को सरल करके उन्हें जाकर समझा दो।.. सभी को जाकर समझा दो कि ब्राह्मणों की तरह तुम्हारा भी धर्म में एकसा अधिकार है। चांडाल तक को इस अग्नि-मंत्र में दीक्षित करो और सरल भाषा में उन्हें व्यापार, वाणिज्य, कृषि आदि गृहस्थ-जीवन के अत्यावश्यक विषयों का उपदेश दो।
यह कहीं ज्यादा अच्छा होगा कि यह उच्च शिक्षा प्राप्त कर नौकरी के लिए दफ्तरी की खाक छानने की बजाय लोग थोड़ी सी यांत्रिक शिक्षा प्राप्त करें जिससे काम-धंधे से लगकर अपना पेट तो पाल सकेंगे। जो शिक्षा साधारण व्यक्ति को जीवनसंग्राम में समर्थ नहीं बना सकती, जो मनुष्य में चरित्र-बल, परहित-भावना तथा सिंह के समान साहस नहीं ला सकती, वह भी कोई शिक्षा है? हमें ऐसी शिक्षा की आवश्यकता है, जिससे चरित्र-निर्माण हो, मानसिक शक्ति बढ़े, बुद्धि विकसित हो, और देश के युवक अपने पैरों पर खडे होना सीखें।
इस देश में पुरुष और स्त्रियों में इतना अंतर क्यों समझा जाता है, यह समझना कठिन है। वेदांत शास्त्र में तो कहा है, एक ही चित् सत्ता सर्व भूत में विद्यमान है। तुम लोग स्त्रियों की निंदा ही करते हो। उनकी उन्नति के लिए तुमने क्या किया, बोलो तो?
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