व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> मेरा जीवन तथा ध्येय मेरा जीवन तथा ध्येयस्वामी विवेकानन्द
|
252 पाठक हैं |
दुःखी मानवों की वेदना से विह्वल स्वामीजी का जीवंत व्याख्यान
स्त्रियों की पूजा करके सभी जातियाँ बड़ी बनी हैं। जिस देश में, जिस जाति में स्त्रियों की पूजा नहीं, वह देश, वह जाति न कभी बड़ी बन सकी और न कभी बन ही सकेगी। महामाया की साक्षात् मूर्ति - इन स्त्रियों का उत्थान न होने से क्या तुम लोगों की उन्नति संभव है?
उनकी समस्याएँ बहुत सी हैं और गंभीर हैं, पर उनमें एक भी ऐसा नहीं है, जो जादू भरे शब्द 'शिक्षा' से हल न की जा सकती हो। पहले अपनी स्त्रियों को शिक्षा दो, उन्हें उनकी स्थिति पर छोड़ दो, तब वे तुमसे बतायेंगी कि उनके लिए क्या सुधार आवश्यक है। हमें नारियों को ऐसी स्थिति में पहुँचा देना चाहिए, जहाँ वे अपनी समस्या को अपने ढंग से स्वयं सुलझा सकें। स्त्री जाति के प्रश्न को हल करने के लिए आगे बढ़ने वाले तुम हो कौन? क्या तुम भगवान हो ...? दूर हो!
अब धर्म को केंद्र बनाकर स्त्री-शिक्षा का प्रचार करना होगा। धर्म के अतिरिक्त दूसरी शिक्षाएं गौण होंगी। धर्मशिक्षा, चरित्र-गठन तथा ब्रह्मचर्यपालन इन्हीं के लिए तो शिक्षा की आवश्यकता है।
भारतीय नारियों से सीता के चरण-चिन्हों का अनुसरण कराकर अपनी उन्नति की चेष्टा करनी होगी, यही एकमात्र पथ है। हमारी नारियों को आधुनिक भावों में रँगने की जो चेष्टाएँ हो रही हैं, यदि उन सब प्रयत्नों में उनको सीता-चरित्र के आदर्श से भ्रष्ट करने की चेष्टा होगी, तो वे सब असफल होंगे, जैसा कि हम प्रतिदिन देखते हैं।
हिंदू स्त्री के लिए सतीत्व का अर्थ समझना सरल ही है, क्योंकि यह उसकी विरासत है, परंपरागत संपत्ति है। इसलिए सर्वप्रथम यह ज्वलंत आदर्श भारतीय नारी के हृदय में सर्वोपरि रहे, जिससे वे इतनी दृढ़चरित्र बन जायँ कि चाहे विवाहित हों या कुमारी, जीवन की हर अवस्था में अपने सतीत्व से तिल भर भी डिगने की अपेक्षा, जीवन की निडर होकर आहुति दे दें! ... साथ साथ, महिलाओं को विज्ञान एवं अन्य विषय, जिनसे कि केवल उनका ही नहीं, अन्य लोगों का भी हित हो, सिखाये जायें।
|