व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> मेरा जीवन तथा ध्येय मेरा जीवन तथा ध्येयस्वामी विवेकानन्द
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दुःखी मानवों की वेदना से विह्वल स्वामीजी का जीवंत व्याख्यान
हे भाइयो, हम सभी लोगों को इस समय कठिन परिश्रम करना होगा। अब सोने का समय नहीं है। पहले से ही बड़ी-बड़ी योजनाएँ न बनाओ, धीरे-धीरे कार्य प्रारंभ करो, जिस जमीन पर खड़े हो, उसे अच्छी तरह से पकड़कर क्रमश: ऊँचे चढ़ने की चेष्टा करो।' जागो, जागो, लम्बी रात बीत रही है, सूर्योदय का प्रकाश दिखाई दे रहा है। ऊँची तरंग उठ रही है, उसका भीषण वेग किसी से न रुक सकेगा।
मैं अपने मानसचक्षु से भावी भारत की उस पूर्णावस्था को देखता हूँ, जिसका इस विप्लव और संघर्ष से तेजस्वी और अजेय रूप में वेदांती बुद्धि और इस्लामी शरीर के साथ उत्थान होगा।.. हमारी मातृभूमि के लिए इन दोनों विशाल मतों का सामंजस्य हिंदुत्व और इस्लाम - वेदांती बुद्धि और इस्लामी शरीर यही एक आशा है।
यह पहले कहा जा चुका है कि ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र - ये चारों ही वर्ण यथाक्रम पृथ्वी का भोग करते हैं। एक ऐसा समय आयेगा जब शूद्रत्वसहित शूद्रों का प्राधान्य होगा, अर्थात् आजकल जिस प्रकार शूद्र जाति वैश्यत्व अथवा क्षत्रियत्व लाभ कर अपना बल दिखा रही है, उस प्रकार नहीं, वरन् अपने शूद्रोचित धर्मकर्मसहित वह समाज में आधिपत्य प्राप्त करेगी। पाश्चात्य जगत् में इसकी लालिमा भी आकाश में दिखने लगी है, और इसका फलाफल विचार कर सब लोग घबराये हुए हैं। 'सोशलिज्म', 'अनार्किज्म' 'नाइहिलिज्म' आदि संप्रदाय इस विप्लव की आगे चलनेवाली ध्वजाएँ हैं।
सुदीर्घ रजनी अब समाप्त होती हुई जान पड़ती है। महादुःख का प्रायः अंत ही प्रतीत होता है। महानिद्रा में निमग्न शव मानो जागृत हो रहा है। इतिहास की बात तो दूर रही, जिस सुदूर अतीत के घनांधकार को भेद करने में अनुश्रुतियाँ भी असमर्थ हैं, वही से एक आवाज हमारे पास आ रही है। ज्ञान, भक्ति और कर्म के अनंत हिमालय स्वरूप हमारी मातृभूमि भारत की हर एक चोटी पर प्रतिध्वनित होकर यह आवाज मृदु, दृढ़, परंतु अभ्रांत स्वर में हमारे पास तक आ रही है। जितना समय बीतता है, उतनी ही वह और भी स्पष्ट तथा गंभीर होती जाती है - और देखो, वह निद्रित भारत अब जागने लगा है। मानो हिमालय के प्राणप्रद वायु-स्पर्श से मृतदेह के शिथिलप्राय अस्थि मांस तक में प्राण-संचार हो रहा है। जड़ता धीरे-धीरे दूर हो रही है। जो अंधे हैं, वे ही देख नहीं सकते और जो विकृतबुद्धि हैं वे ही समझ नहीं सकते कि हमारी मातृभूमि अपनी गंभीर निद्रा से अब जाग रही है। अब कोई उसे रोक नहीं सकता। अब यह फिर सो भी नहीं सकती। कोई बाह्य शक्ति इस समय इसे दबा नहीं सकती क्योंकि यह असाधारण शक्ति का देश अब जागकर खड़ा हो रहा है।
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