व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> मेरा जीवन तथा ध्येय मेरा जीवन तथा ध्येयस्वामी विवेकानन्द
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दुःखी मानवों की वेदना से विह्वल स्वामीजी का जीवंत व्याख्यान
उनके (श्रीरामकृष्णदेव के) जन्म की तिथि से ही सत्ययुग का आरंभ हुआ है। इसलिए अब सब प्रकार के भेदों का अंत है और सब लोग चांडालसहित उस दैवी प्रेम के भागी होंगे। पुरुष और स्त्री, धनी और दरिद्र, शिक्षित और अशिक्षित, ब्राह्मण और चांडाल इन सब भेद-भावों को समूल नष्ट करने के लिए उनका जीवन व्यतीत हुआ था। वे शांति के दूत थे - हिंदू और मुसलमानों का भेद और हिंदू और ईसाइयों का भेद - सब भूतकालीन हो गये हैं। मान-प्रतिष्ठा के लिए जो झगड़े होते थे, वे सब अब दूसरे युग से संबंधित हैं। इस सत्य युग में श्रीरामकृष्ण के प्रेम की विशाल लहर ने सब को एक कर दिया है। श्रीरामकृष्ण के जैसा पूर्ण चरित्र कभी किसी महापुरुष का नहीं हुआ, इसलिए हमें चाहिए कि हम उन्ही को केंद्र बनाकर डट जायँ। हाँ, हर एक आदमी उनको अपने-अपने ढंग से ग्रहण करें, इसमें कोई रुकावट नहीं डालनी चाहिए। चाहे कोई उन्हें ईश्वर माने, चाहे परित्राता या आचार्य, या आदर्श पुरुष अथवा महापुरुष - जो जैसा चाहे वह उन्हें उसी ढंग से समझे।
यदि ऐसा राज्य स्थापित करना संभव हो जिसमें ब्राह्मण युग का ज्ञान, क्षत्रिय युग की सभ्यता, वैश्य युग का प्रचारभाव और शूद्र युग की समानता रखी जा सके उनके दोषों को त्याग कर - तो वह आदर्श राज्य होगा। मेरा विश्वास है कि जब एक जाति, एक वेद तथा शांति एवं एकता होगी, तभी सत्ययुग (स्वर्ण युग) आयेगा। सत्ययुग का यह विचार ही भारत को पुनः जीवन प्रदान करेगा। विश्वास रखो! ... बच्चो, उठो, काम में लग जाओ। यदि तुम यह कर सके, तो मुझे आशा है कि भविष्य में हम बहुत कुछ कर सकेंगे।.. चिरकाल तक सनातन धर्म का डंका बजेगा। ... उठो, उठो, मेरे बच्चो। हमारी विजय निश्चित है।
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