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कविता संग्रह >> नारी की व्यथा

नारी की व्यथा

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :124
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9590

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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ


23. अब पिता और माँ को मेरी


अब पिता और माँ को मेरी
शादी की चिंता सताने लगी
उन्हें तो बस अब मैं
पराई नजर आने लगी।

माँ मुझको कंधे से बड़ी
पिताजी को बताने लगी

क्यों मैं पराई नजर आती हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।

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