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कविता संग्रह >> नारी की व्यथा

नारी की व्यथा

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :124
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9590

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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ


26. फिर मैं आकर लेट गई


फिर मैं आकर लेट गई
अपने कमरे में चारपाई पर
आँखं मिचूँ, मिच ना पायें
थी मैं खुश अपनी किस्मत पर

शायद सुन्दर होगा वर
कैसा होगा मेरा वर।

यूँ सोच रातें कई गुजारी हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।

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