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कविता संग्रह >> नारी की व्यथा

नारी की व्यथा

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :124
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9590

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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ


30. फिर पिता भी मान गये


फिर पिता भी मान गये
उस बूढ़े को जान गये
बच्ची हूँ अभी मैं छोटी
ये बात भी पहचान गये

पर शादी तो करनी ही है
जिन्दगी तो यूँ ही चलनी है

मैं पिता की समझदारी हूँ।
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।

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