लोगों की राय

कविता संग्रह >> नारी की व्यथा

नारी की व्यथा

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :124
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9590

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

268 पाठक हैं

मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ


46. पता नहीं जाने कब मेरी


पता नहीं जाने कब मेरी
पलकें, पलकों में उलझ गई
न जाने ओर कब मैं
बिस्तर पर गिरी ओर सो गई

सुबह की भोर हो चुकी थी
नींद अभी भी मुझपे चढ़ी थी,

नींद के आगोश में खो चुकी हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।

¤ ¤

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book