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कविता संग्रह >> नारी की व्यथा

नारी की व्यथा

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :124
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9590

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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ


52. मैं बोलती जा रही थी


मैं बोलती जा रही थी
वो मुझे बस देख रहा था
मैंने उसे बोलने का शायद
मौका ही ना दिया था

उसकी बातें सुनने का
मेरे पास समय था कहाँ

आज मैं जल्दबाजी में हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।

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