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कविता संग्रह >> नारी की व्यथा

नारी की व्यथा

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :124
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9590

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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ


55. अब मैं चुप, वह बोल रहा था


अब मैं चुप, वह बोल रहा था
कानों में अमृतरस घोल रहा था
उसकी वह मृदु वाणी सुन
सारा तन-मन डोल रहा था।

शपथ कर चुका था मुझे पाने की
और जग से लड़ जाने की

सुन आँखों से नीर बहाती हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।

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