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उपन्यास >> परम्परा

परम्परा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :400
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9592

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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास


दिन-रात दशग्रीव को प्रहस्त इत्यादि भूमण्डल पर राक्षस राज्य स्थापित करने की प्रेरणा देने लगे।

भूमण्डल विजय करने में दशग्रीव ने अपने सम्बन्ध राक्षसों के अतिरिक्त जाति वालों से बनाने आरम्भ कर दिये। इस अर्थ उसने अपने पूर्वज दानवों से सम्बन्ध पुनर्जीवित करने कि लिये अपनी बहन शूर्पणखा का विवाह काल दानव के पुत्र विद्युतजिह्न से कर दिया। दानव अदिति दिति की एक बहन दनु की सन्तान थे। इस सम्बन्ध से भूतल पर बचे-खुचे दानव लंका में एकत्रित होने लगे।

दशग्रीव ने अपना विवाह दैत्यों के परिवार के मय की कन्या मन्दोदरी से किया। यह विवाह घटनावश ही हुआ था। दशग्रीव एक दिन वन में आखेट के लिये गया हुआ था कि उसकी दृष्टि एक शौर्यवान पुरुष और उसके साथ एक सुन्दर कन्या पर जा पड़ी। दशग्रीव को उनका वहाँ भ्रमण करते हुए विस्मय हुआ और उसने पुरुष से प्रश्न कर दिया, ‘‘भगवन्! आप इस निर्जन वन में कहाँ घूम रहे हैं?’’

उस पुरुष ने एक ओजस्वी युवक को आखेट के लिये वन में देखा तो कहा, ‘‘भगवन्! मेरा नाम मय है। मैं दैत्य हूँ। मैं एक बार इन्द्र की पुरी अमरावती में भ्रमण कर रहा था कि वहाँ की एक हेमा नाम की अप्सरा से विवाह की याचना की। इन्द्र अपने नगर की अप्सरा को दैत्यों के घर में जाने पर आपत्ति करता था, परन्तु जब मैंने बताया कि महारानी शचि भी तो दैत्यों की लड़की है और जब उन्होंने इसे इन्द्र को देना स्वीकार किया तो मुझे भी एक देवलोक की स्त्री से विवाह की स्वीकृति मिलनी चाहिये।

‘‘इन्द्र मान गया और मेरा विवाह हेमा से हो गया। हमने अपना एक नया प्रासाद बनाया और उसमें सुखपूर्वक रहने लगे। हमारे प्रासाद के चारों ओर नगर बस गया और उसका नाम मायापुरी रखा गया। वहाँ दैत्य एकत्रित होने लगे। मेरे हेमा से एक लड़की और दो लड़के हुए। एक लड़के का नाम मायावी है और दूसरे का नाम दुंदुभी है। लड़की का नाम मन्दोदरी है।

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