उपन्यास >> परम्परा परम्परागुरुदत्त
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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास
‘‘कई वर्ष तक मेरे पास रहने के उपरान्त हेमा मुझे छोड़कर देवलोक में चली गयी और अब पुनः वह वहाँ अप्सरा का जीवन व्यतीत कर रही है।’’
‘‘क्यों?’’
‘‘इस कारण कि विवाहित जीवन के बन्धनों से वह ऊब गयी प्रतीत होती थी। अप्सरा के जीवन में उस पर किसी प्रकार का प्रतिबन्ध नहीं है। प्रतिबन्ध पुरुषों पर रहता है। वह बिना उसकी इच्छा के उसका भोग नहीं कर सकते। विवाहित जीवन में तो पुरुष की इच्छा अधिक चलती है। इस कारण वह मेरे घर से भाग गयी है।
‘‘मैं उसके चले जाने पर अत्यन्त दुःख अनुभव करने लगा हूँ। यह मेरी लड़की है। इसके साथ वन-भ्रमण से दिल बहला रहा हूँ। इसके साथ भ्रमण करता-करता इधर आ गया हूँ।’’
अब दशग्रीव ने अपना परिचय दिया। परिचय देकर कहा, ‘‘आपकी यह कन्या मुझे प्रिय लग रही है। मैं इससे विवाह की इच्छा करने लगा हूँ।’’
मय ने इस प्रस्ताव से प्रसन्न हो वहीं अग्नि प्रदीप्त कर अपनी लड़की मन्दोदरी का विवाह रावण से कर दिया।
लंका अति सुन्दर और सुखद् स्थान था। मन्दोदरी के दोनों भाई भी दशग्रीव के सहायक हो वही रहने लगे।
दशग्रीव ने अपने भाई कुम्भकर्ण और विभीषण दोनों का विवाह भी अन्य शिष्ट परिवारों में कर दिया।
मन्दोदरी के भाई मायावी की यह सम्पति थी कि देवलोक पर आक्रमण करना चाहिये। वह देवताओं से रुष्ट था। अपनी माँ के वहाँ चले जाने पर वह इन्द्र के पास उसे माँगने गया था। परन्तु उसे धक्के दे-देकर देवलोक से निकाल दिया गया था। अतः वह लंका का धन-दौलत और बलवानों का संग्रह स्थान देख अपना देवताओं से प्रतिशोध लेने की बात विचार कर बैठा।
दशग्रीव विश्व-विजय के स्वप्न देख रहा था। राक्षसों के देवताओं से प्रतिशोध की भावना में मायावी देवताओं के प्रति द्वेष में सहायक हो गया और दशग्रीव देवलोक विजय की योजना बनाने लगा।
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