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उपन्यास >> परम्परा

परम्परा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :400
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9592

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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास


दशग्रीव इस नगरी पर राज्य कर इन सब सुन्दर ललनाओं को अपने रनवास में रखने की इच्छा करने लगा। इस समय उसने पूछ लिया, ‘‘आप कौन है जो यहाँ अपना सौन्दर्य और लालित्य बिना मूल्य बिखेर रही है।’’

उस स्त्री ने बताया, ‘‘हम इस प्रासाद में रहने वाले की श्री वैश्रवण के पुत्र नलकूबर की दासियाँ हैं। हम यहाँ पर रम्भा की प्रतीक्षा में खड़ी है।’’

‘‘रम्भा! वह कौन है?’’

‘‘यहाँ की सर्वश्रेष्ठ अप्सरा है। वह महाराज नलकूबरजी की प्रेमिका है। वह अपने निवास-गृह में आने वाली है।’’

‘‘क्या मैं भी उसके दर्शन कर सकूँगा?’’

‘‘उसके आने पर सब लोग उसे देखते हैं। आप भी देख सकेंगे। परन्तु भगवन्, आप कहते हैं कि आप विमानचारी हैं। अतः आप अवश्य ही कोई देवता होंगे। आप अपना परिचय दीजिये।’’

दशग्रीव ने अपना परिचय दिया तो सब ललनायें उसे आदर की दृष्टि से देखने लगीं।

कुछ ही देर में एक अति सुन्दर रमणी सोलहों श्रृंगार से युक्त अपनी वेणी में पाटल का फूल लगाये हुए और गले में वैजयन्ती पुष्पों की माला पहने हुए मस्त चली आती दिखायी दी।

दशग्रीव ने उसको देखा और अति मुग्ध हो खड़ा रह गया। जब वह समीप आ गयी तो दशग्रीव ने आगे बढ़ हाथ जोड़ प्रणाम किया और अपना परिचय दे दिया। तदनन्तर कहा, ‘‘मुझे ज्ञात हुआ है कि आप रम्भा हैं और गृह-स्वामी की सेवा के लिये आयी है।’’

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