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उपन्यास >> परम्परा

परम्परा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :400
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9592

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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास


‘‘हाँ। मैं आपकी पतोहू हूँ। आपके भाई के पुत्र की पत्नी।’’

‘‘मैं आपसे पृथक में एक बात कहना चाहता हूँ।’’

‘‘तो भीतर आइये। आपके भाई के लड़के आपसे परिचय प्राप्त कर अत्यन्त प्रसन्न होंगे।’’

‘‘पहले आपसे एक बात करना चाहता हूँ। इस समीप के कुंज में आइये।’’

रम्भा झिझक रही थी। उसने कुछ कहा नहीं। वह खड़ी विचार करती रही।

दशग्रीव ने उसकी बाँह पकड़ आग्रह करते हुए कहा, ‘‘देवी! तनिक इधर आओ। तुम्हें कुछ दिखाना चाहता हूँ।’’

अनिच्छा से रम्भा घसीटी जाती हुई मौन उस कुंज में चली गयी। दशग्रीव ने उसे अपनी बलिष्ठ भुजाओं में उठाया और इधर को भागा जिधर उसका विमान खड़ा था। वह समीप ही था। दशग्रीव ने उसे विमान में बैठाया और आकाश में उड़ा ले गया।

विमान पर रम्भा से बलात्कार किया और कुछ देर उपरान्त उसे नलकूबर के प्रासाद के समीप उतार दिया। उसके उतरते ही दशग्रीव विमान को उड़ाकर लंका की ओर चल पड़ा।

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