लोगों की राय

उपन्यास >> परम्परा

परम्परा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :400
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9592

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

352 पाठक हैं

भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास

13

अगले दिन कुलवन्तसिंह उठा तो उसको पता चला कि अमृत उसके बैठकघर में बैठा उसकी प्रतीक्षा कर रहा है। वह शयनागार से निकल उसे बैठा देख पूछने लगा, ‘‘क्यों? फिर पत्नी ने शयनागार से निकाल दिया है?’’

अमृत हँस पड़ा। हँसते हुए बोला, ‘‘यह बात नहीं है।’’

‘‘तो क्या बात है?’’

‘‘मैं महिमा को कह रहा हूँ कि कुछ दिन की छुट्टी लेकर उसे कहीं भ्रमण के लिये ले जाऊँ।’’

कुलवन्तसिंह गम्भीर हो गया। उसने कहा, ‘‘रात विंग-कमाण्डर साहब टेलीफोन पर कह रहे थे कि ऊपर से आज्ञा आ गयी है कि जब तक नये आदेश नहीं आ जाते, तब तक छुट्टियाँ बन्द और जो छुट्टी पर गये हुए हैं, उनको तुरन्त वापस बुला लो।’’

‘‘तो युद्ध अवश्य होगा?’’

‘‘हाँ। मैं तो अपने अधिकारियों को यह कहा करता हूँ कि जब तक वर्त्तमान पाकिस्तान बना रहता है, तब तक युद्ध की सम्भाना है।’’

‘‘मेरा यह अभिप्राय है कि निकट भविष्य में युद्ध हो रहा है क्या?’’

‘‘जब हम सम्भावना का शब्द प्रयोग करते हैं तो निकट भविष्य की ही बात होती है। पाकिस्तान बना था १४ अगस्त, सन् १९४७ को; और पाकिस्तान से प्रथम युद्घ आरम्भ हो गया था २३ अक्टूबर, सन् १९४७ को। यह युद्ध हमने बन्द किया था प्रथम जनवरी, सन् १९४९ को। तदनन्तर युद्घ होता-होता रुका था सन् १९५॰ में, जब पूर्वी पाकिस्तान में हिन्दुओं का कत्ले-आम किया जा रहा था। यदि उस समय नेहरू प्रधान मन्त्री न होते तो युद्ध हो जाता। तब से अभी तक अनेक बार पाकिस्तानियों ने हमारे देश की सीमा पार कर लूटमार मचायी है, परन्तु नेहरूजी इसे नहीं मानते रहे। इस पर भी ये घटनायें इतना तो प्रकट करती हैं कि हम पाकिस्तान से निरन्तर अठ्ठारह वर्ष से युद्ध की स्थिति में हैं।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book