उपन्यास >> परम्परा परम्परागुरुदत्त
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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास
जिस दिन युद्ध-विराम की घोषणा हुई, उसी दिन सेना विभाग की ओर से एक टेलीग्राम आया कि लायलपुर राडार स्टेशन पर जो जहाज गिरा था, उसमें एयर पायलट अमृतलाल था। उसका कोई समाचार नहीं। यह समझा जा रहा है कि अमृतलाल वीर गति को प्राप्त हो गये हैं।
तार महिमा ने पढ़ा। वह तार पढ़कर स्तब्ध रह गयी। उसे हतोत्साह कुर्सी पर बैठते देख सुन्दरी ने पूछ लिया, ‘‘क्या बात है, महिमा?’’
महिमा की आँखों से आँसू ढुलकने लगे थे। सुन्दरी समझ गयी। उसने पतोहू के हाथ से तार ली और ऊपर की मंजिल पर जाकर गरिमा से पढ़ायी। गरिमा ने तार पढ़कर कहा, ‘‘माताजी! बहुत ही बुरा समाचार है।’’
सुन्दरी ने एक लम्बा साँस लिया और वहीं सोफा पर बैठ गयी। गरिमा ने माताजी को आश्रय दे उठाया और दोनों नीचे महिमा के पास आ गयीं।
तीनों स्त्रियाँ बिना बोले एक-दूसरे का मुख देखती हुई मौन बैठी थीं। तीनों के आँसू बह रहे थे।
सूचना भेजने पर पण्डित सुरेश्वर भी दिल्ली चला आया। जिस दिन वह आया, उसी दिन कुलवन्त भी दिल्ली लौट आया। उसने बताया, ‘‘आक्रमण के समय हम पूरे दल-बल के साथ वहाँ गये थे। हम बारी-बारी से नीचे उतरते थे। भूमि से दो सौ गज़ की ऊँचाई तक जाकर राडार पर बम्ब फेंकते थे और फिर भाग कर ऊपर चले आते थे। अमृत ने तीसरी बार आक्रमण किया। नीचे से गोलियाँ चल रही थीं। यह हमारी अन्तिम बारी थी। वैसे राडार के आस-पास इमारतें उड़ गयी थीं, परन्तु राडार पर हिट नहीं लगी थी।
‘‘अमृत ने राडार पर बम्ब फेंका। निशाना ठीक रहा, परन्तु उसके जहाज के टैंक पर गोली लग गयी और पैट्रोल के टैक को आग लग गयी। उसने हवाई जहाज वापस भगाया, परन्तु कुछ दूर तक लौटने पर उसके हवाई जहाज से धमाका हुआ और हवाई जहाज आकाश में ही टूट गया। हममें से कुछ कहते हैं कि उन्होंने धमाके के पहले हवाई जहाज में से उसे पैराशूट से नीचे उतरते देखा है। परन्तु पाकिस्तान से सूचना नहीं आयी कि कोई पकड़ा गया है अथवा नहीं।’’
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