उपन्यास >> परम्परा परम्परागुरुदत्त
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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास
‘‘पुत्रेष्टि-यज्ञ वहाँ के ऋषि भी सिद्ध कर देंगे, परन्तु जो यज्ञ से पुत्र बनने वाला है, वह आप सबकी रक्षा कर सके, ऐसी योजना अश्विनीकुमार ही कर सकते हैं।
‘‘वह यहाँ से राजा की रानियों के लिये फल-पाक बनाकर भेजें तो राजा के घर में अति सुन्दर, बलवान, मेधावी और साहसी शरीर वाली सन्तान निर्माण हो सके। यदि यह ऐसा प्रबन्ध कर दें तो कोई परमात्मा की श्रेष्ठ विभूति से युक्त आत्मा उस कलेवर में चली जायेगी। तदनन्तर उसका राक्षसों से आमना-सामना कराने का प्रबन्ध किया जा सकेगा और भू-भार टल जायेगा।
‘‘उस महापुरुष को सहयोग देने के लिये तुम लोग लंका के समीप के क्षेत्रों में चले जाओ और वहाँ जाकर श्रेष्ठ, बलवान सन्तान उत्पन्न करो। यही अमृत-मन्थन के समय किया गया था। तब नागों और देवताओं के सहयोग से यह संकट टला था। अब रीछ, वानर, गिद्ध इत्यादि जातियों से तुम अपना वीर्य सिंचन करो। तब ही इस संकट का निवारण हो सकेगा।’’
ब्रह्मा की इस सम्मति पर कार्य करने के लिये देवता लोग परम्परा परामर्श करने लगे और अश्विनीकुमारों को फल-पाक तैयार करने के लिये यह दिया गया।
यह समाचार मुनि विश्रवा के आश्रम में भी पहुँचा कि देवता लोग दशग्रीव की हत्या कराने की योजना बना रहे हैं। इस समाचार से दशग्रीव की माता कैकसी को भय लग गया। उसने अपने पति से कहा, ‘‘महाराज! क्या देवताओं की यह योजना सफल होगी?’’
‘‘अवश्य होनी चाहिये। क्यों न हो?’’
‘‘इस कारण कि वह आपका पुत्र है। ब्रह्मा से कुशल योद्धा का प्रामण पत्र-प्राप्त है और लाखों लड़ने-मरने वाले सैनिक उसके संकेत मात्र पर लड़ जाने वाले उसके पास है?’’
‘‘इस पर भी देवी! वह पापी है और उसका विनाश होगा ही।’’
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