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उपन्यास >> परम्परा

परम्परा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :400
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9592

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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास


‘‘तो कुछ उपाय नहीं है?’’

‘‘उपाय तो है। कोई पाप नहीं जिसका कि प्रायश्चित्त न हो।’’

‘‘तो भगवन्! उससे वह प्रायश्चित्त कराइये।’’

‘‘वह हमारा कहा नहीं मानेगा।’’

‘‘इस पर भी आप स्नेह रखने वाले पिता के नाते उसको सुमति दाजिये।’’

विश्रवा का विचार था कि रावण कोई भी अच्छी सम्मति को मानेगा नहीं। इस कारण उसने सिर हिलाते हुए कहा, ‘‘नहीं सुश्रीणि! मैं उसको सम्मति देकर और उसे अस्वीकार करा कर अपना अपमान नहीं कराना चाहता।’’

कैकसी निराश नहीं हुई। इन दिनों कुबेर आश्रम में ही रह रहा था। अल्कापुरी में नलकूबर राज्य करता था। अतः कैकसी कुबेर की माता के पास पहुँची। उसने कहा, ‘‘रोहिणी बहन! तुम तो दया की मूर्ति हो। एक दया का कार्य मेरे लिये भी कर दो।’’

‘‘हाँ, बताओ। क्या कहती हो?’’

‘‘अपने सुपुत्र को कहकर मेरे पुत्र दशग्रीव को यह सम्मति भिजवा दो कि देवता लोग उसकी हत्या का कार्यक्रम विचार कर रहे हैं। इस कारण उसे अपने व्यवहार को शुद्ध कर देवताओं से सन्धि कर लेनी चाहिये। यदि वह अपने पूर्व के कर्मों पर पश्चात्ताप प्रकट करे तो निश्चय ही देवता उसके पहले के कार्यों को भूल जायेंगे और भविष्य में वे उसक अभ्युदय में सहायक हो जायेंगे।’’

रोहिणी ने समझा कि यह तो बहुत अच्छा काम है। यदि वह इसमें सफल हो जाये तो सहस्त्रों निर्दोष सैनिकों की जान बच जायेगी। इससे वह महान पुण्य की भागी बन जायेगी।

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