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धर्म एवं दर्शन >> सरल राजयोग

सरल राजयोग

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :73
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9599

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स्वामी विवेकानन्दजी के योग-साधन पर कुछ छोटे छोटे भाषण


द्वितीय पाठ


इस योग का नाम अष्टांग योग है, क्योंकि इसको प्रधानत: आठ भागों में विभक्त किया गया है। वे हैं :

प्रथम - यम। यह सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है और सारा जीवन इसके द्वारा शासित होना चाहिए। इसके पाँच विभाग हैं :

(1) मन, वचन, कर्म से हिंसा न करना।

(2) मन, वचन, कर्म से लोभ न करना।

(3) मन, वचन और कर्म की पवित्रता।

(4) मन, वचन और कर्म द्वारा पूर्ण सत्यनिष्ठ होना।

(5) अपरिग्रह (किसी से कोई दान न लेना)।


द्वितीय - नियम। शरीर की देखभाल, नित्य स्नान, परिमित आहार इत्यादि।

तृतीय - आसन। मेरुदण्ड के ऊपर जोर न देकर कमर, गर्दन और सिर सीधा रखना।

चतुर्थ - प्राणायाम। प्राणवायु अथवा जीवनशक्ति को वशीभूत करने के लिए श्वास-प्रश्वास का संयम।

पंचम - प्रत्याहार। मन को अन्तर्मुख करना तथा उसे बहिर्मुखी होने से रोकना, जड़-तत्त्व को समझने के लिए उस पर बार-बार विचार करना।

षष्ठ - धारणा। किसी एक विषय पर मन केन्द्रित करना।

सप्तम - ध्यान

अष्टम - समाधि। ज्ञानालोक की प्राप्ति - हमारी समस्त साधना का लक्ष्य।

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