धर्म एवं दर्शन >> सूक्तियाँ एवं सुभाषित सूक्तियाँ एवं सुभाषितस्वामी विवेकानन्द
|
6 पाठकों को प्रिय 345 पाठक हैं |
अत्यन्त सारगर्भित, उद्बोधक तथा स्कूर्तिदायक हैं एवं अन्यत्र न पाये जाने वाले अनेक मौलिक विचारों से परिपूर्ण होने के नाते ये 'सूक्तियाँ एवं सुभाषित, विवेकानन्द-साहित्य में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।
80. मै सत्य के लिए हूँ। सत्य मिथ्या के साथ कभी मैत्री नहीं कर सकता। चाहे सारी दुनिया मेरे विरुद्ध हो जाय, अन्त में सत्य ही जीतेगा।
81. परम मानवतावादी विचार जब भी समूह के हाथो में पड़ जाते हैं, तो पहला परिणाम होता है - पतन। विद्वत्ता और बुद्धि से वस्तुओं को सुरक्षित रखने में सहायता मिलती है। किसी भी समाज में जो संस्कृत हैं, वे ही धर्म और दर्शन को शुद्ध 'रूप' में रखनेवाले सच्चे धर्मरक्षक हैं। किसी भी जाति की बौद्धिक और सामाजिक परिस्थिति का पता लगाना हो, तो उसी 'रूप' से चल सकता है।
82. अमेरिका में स्वामीजी ने एक बार कहा मैं किसी नयी अवस्था में तुम्हारा धर्म-परिवर्तन कराने के लिए नहीं आया हूँ। मैं चाहता हूँ? तुम अपना धर्म पालन करो, मेथाडिस्ट और अच्छे मेथाडिस्ट बने; प्रेसबिटेरियन और अच्छे प्रेसबिटेरियन हो, यूनिटेरियन और अच्छे यूनिटेरियन हो। मैं चाहता हूँ तुम सत्य का पालन करो, अपनी आत्मा में जो प्रकाश है, वह व्यक्त करो।
83. सुख आदमी के सामने आता है, तो दुःख का मुकुट पहनकर। जो उसका स्वागत करता है, उसे दुःख का भी स्वागत करना चाहिए।
84. जिसने दुनियां से पीठ फेर ली, जिसने सब का त्याग कर दिया, जिसने वासना पर विजय पायी जो शान्ति का प्यासा है, वही मुक्त है, वही महान् है। किसी को राजनीतिक और सामाजिक स्वतन्त्रता चाहे मिल जाय, पर यदि वह वासनाओं और इच्छाओं का दास है, तो सच्ची स्वतन्त्रता का शुद्ध आनन्द वह नहीं जान सकता।
|