धर्म एवं दर्शन >> सूक्तियाँ एवं सुभाषित सूक्तियाँ एवं सुभाषितस्वामी विवेकानन्द
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अत्यन्त सारगर्भित, उद्बोधक तथा स्कूर्तिदायक हैं एवं अन्यत्र न पाये जाने वाले अनेक मौलिक विचारों से परिपूर्ण होने के नाते ये 'सूक्तियाँ एवं सुभाषित, विवेकानन्द-साहित्य में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।
संघर्ष को विकास का चिह्न मानना तुम्हारी बड़ी भूल है। बात ऐसी कदापि नहीं है। आत्मसात्करण ही उसका चिह्न है। हिन्दू धर्म आत्मसात्करण की प्रतिभा का ही नाम है। हमने संघर्ष की कभी चिन्ता नहीं की। निश्चय ही हम कभी-कभी अपने घर की रक्षा के लिए प्रहार कर ही सकते थे! वह ठीक भी होता। पर हमने कभी संघर्ष के लिए संघर्ष की ओर ध्यान नहीं दिया। प्रत्येक को यह पाठ सीखना पड़ा। अत: ये नवागन्तुक जातियाँ चक्कर काटती रहें! अन्त में वे सब हिन्दू धर्म में समाहित हो जायेंगी।
116. सगुण ईश्वर, केवल मानव-आत्माओं का ही नहीं, प्रत्युत सभी आत्माओं का पूर्ण योग है। पूर्ण की इच्छा का विरोध कोई नहीं कर सकता। इसी को हम नियम कहते हैं। यही 'शिव' और 'काली' इत्यादि का अर्थ है।
117. कराल की उपासना! मृत्यु की अर्चना! और सब मिथ्या है। समस्त संघर्ष व्यर्थ हैं। यही अन्तिम पाठ है। किन्तु यह कायर का मृत्यु-प्रेम नहीं है, न निर्बलों का प्रेम है, और न यह आत्मघात है। यह तो उस वीर द्वारा किया गया स्वागत है, जिसने प्रत्येक वस्तु को गहराई से जान लिया है और जो यह 'जानता है' कि कोई अन्य मार्ग नहीं है।
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