धर्म एवं दर्शन >> सूक्तियाँ एवं सुभाषित सूक्तियाँ एवं सुभाषितस्वामी विवेकानन्द
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अत्यन्त सारगर्भित, उद्बोधक तथा स्कूर्तिदायक हैं एवं अन्यत्र न पाये जाने वाले अनेक मौलिक विचारों से परिपूर्ण होने के नाते ये 'सूक्तियाँ एवं सुभाषित, विवेकानन्द-साहित्य में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।
25. ईश्वर मनुष्य बना, मनुष्य भी फिर से ईश्वर बनेगा।
26. यह एक बच्चों की-सी बात है कि मनुष्य मरता है और स्वर्ग में जाता है। हम कभी न आते हैं, न जाते। हम जहाँ हैं, वहीं रहते हैं। सारी आत्माएँ, जो हो चुकी हैं, अब हैं और आगे होगी, वे सब ज्यामिति के एक बिन्दु पर स्थित हैं।
27. जिसके हृदय की पुस्तक खुल चुकी है, उसे अन्य किसी पुस्तक की आवश्यकता नहीं रह जाती। उनका महत्त्व केवल इतना भर है कि वे हममें लालसा जगाती हैं। वे प्राय: अन्य व्यक्तियों के अनुभव होती हैं।
28. सब प्राणियों के प्रति करुणा रखो। जो दुःख में है, उन पर दया करो। सब प्राणियों से प्रेम करो। किसी से ईर्ष्या मत करो। दूसरों के दोष मत देखो।
29. मनुष्य न तो कभी मरता है, न कभी जन्म लेता है। शरीर मरते हैं, पर वह कभी नहीं मरता।
30. कोई भी किसी धर्म में जन्म नहीं लेता, परन्तु प्रत्येक व्यक्ति धर्म के लिए जन्म लेता है।
31. विश्व में केवल एक आत्मतत्त्व है, सब कुछ केवल उसी की अभिव्यक्तियाँ हैं।
32. समस्त उपासक जनसाधारण और कुछ वीरों में (इन दो वर्गों में) विभक्त हैं।
33. यदि यहाँ और अभी पूर्णता की प्राप्ति असम्भव है, तो इस बात का कोई प्रमाण नहीं कि दूसरे जन्म में पूर्णता मिल ही जायगी।
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