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धर्म एवं दर्शन >> सूक्तियाँ एवं सुभाषित

सूक्तियाँ एवं सुभाषित

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :95
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9602

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अत्यन्त सारगर्भित, उद्बोधक तथा स्कूर्तिदायक हैं एवं अन्यत्र न पाये जाने वाले अनेक मौलिक विचारों से परिपूर्ण होने के नाते ये 'सूक्तियाँ एवं सुभाषित, विवेकानन्द-साहित्य में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।


52. अगर कुछ बुरा करना चाहो, तो वह अपने से बड़ों के सामने करो।

53. गुरु की कृपा से, शिष्य बिना ग्रन्थ पढ़े ही पण्डित हो जाता है।

54. न पाप है, न पुण्य है, सिर्फ अज्ञान है। अद्वैत की उपलब्धि से यह अज्ञान मिट जाता है।

55. धार्मिक आन्दोलन समूहों मे आते हैं। उनमें से हर एक दूसरे से ऊपर बढ़कर अपने को चलाना चाहता है। लेकिन सामान्यत: उनमें से एक की शक्ति बढ़ती है और वही अन्ततः शेष सब समकालीन आन्दोलनों को आत्मसात कर लेता है।

56. जब स्वामीजी रामनाद मे थे, एक सम्भाषण के बीच उन्होंने कहा कि श्रीराम परमात्मा हैं, सीता जीवात्मा और प्रत्येक स्त्री या पुरुष का शरीर लंका है। जीवात्मा जो कि शरीर में बद्ध है, या लंकाद्वीप में बन्दी है, वह सदा परमात्मा श्रीराम से मिलना चाहती है।

लेकिन राक्षस यह होने नहीं देते। और ये राक्षस चरित्र के कुछ गुण हैं जैसे विभीषण सत्त्वगुण है, रावण, रजोगुण, कुम्भकर्ण, तमोगुण। सत्त्वगुण का अर्थ है, अच्छाई, रजोगुण का अर्थ है लोभ और वासना, तमोगुण में अन्धकार, आलस्य, तृष्णा, ईर्ष्या आदि विकार आते हैं। ये गुण शरीररूपी लंका के बन्दिनी सीता को यानी जीवात्मा को परमात्मा श्रीराम से मिलने नहीं देते। सीता जब बन्दिनी होती हैं, और अपने स्वामी से मिलने के लिए आतुर रहती है, उन्हें हनुमान या गुरु मिलते हैं, जो ब्रह्मज्ञानरूपी मुद्रिका उन्हें दिखाते हैं और उसको पाते ही सब भ्रम नष्ट हो जाते हैं, और इस प्रकार से सीता श्रीराम से मिलने का मार्ग पा जाती हैं, या दूसरे शब्दों में जीवात्मा परमात्मा में एकाकार हो जाते हैं।

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