लोगों की राय

धर्म एवं दर्शन >> सूक्तियाँ एवं सुभाषित

सूक्तियाँ एवं सुभाषित

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :95
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9602

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

345 पाठक हैं

अत्यन्त सारगर्भित, उद्बोधक तथा स्कूर्तिदायक हैं एवं अन्यत्र न पाये जाने वाले अनेक मौलिक विचारों से परिपूर्ण होने के नाते ये 'सूक्तियाँ एवं सुभाषित, विवेकानन्द-साहित्य में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।


57. एक सच्चा ईसाई सच्चा हिन्दू होता है, और एक सच्चा हिन्दू सच्चा ईसाई।

58. समस्त स्वस्थ सामाजिक परिवर्तन अपने भीतर काम करनेवाली आध्यात्मिक शक्तियों के व्यक्त रूप होते हैं, और यदि ये बलशाली और सुव्यवस्थित हों, तो समाज अपने आपको उस तरह से ढाल लेता है। हर व्यक्ति को अपनी मुक्ति की साधना स्वयं करनी होती है, कोई दूसरा रास्ता नहीं है। और यही बात राष्ट्रों के लिए भी सही है। और फिर हर राष्ट्र की बड़ी संस्थाएँ उसके अस्तित्व की उपाधियाँ होती हैं और वे किसी दूसरी जाति के साँचे के हिसाब से नहीं बदल सकती। जब तक उच्चतर संस्थाएँ विकसित नहीं होती, पुरानी संस्थाओं को तोड़ने का प्रयत्न करना भयानक होगा। विकास सदैव क्रमिक होता है।

संस्थाओ के दोष दिखाना आसान होता है, चूंकि सभी संस्थाएँ थोड़ी-बहुत अपूर्ण होती हैं, लेकिन मानवजाति का सच्चा कल्याण करनेवाला तो वह है, जो व्यक्तियों को, वे चाहे जिन संस्थाओं में रहते हों, अपनी अपूर्णताओं से ऊपर उठने में सहायता देता है। व्यक्ति के उत्थान से देश और संस्थाओं का भी उत्थान अवश्य होता है। शीलवान लोग बुरी रूढ़ियों और नियमों की उपेक्षा करते हैं और प्रेम, सहानुभूति और प्रामाणिकता के अलिखित और अधिक शक्तिशाली नियम उनका स्थान लेते हैं। वह राष्ट्र बहुत सुखी है, जिसका बहुत थोड़े से कायदे कानून से काम चलता है, और जिसे इस या उस संस्था में अपना सिर खपाने की जरूरत नहीं होती है। अच्छे आदमी सब विधि-विधानो से ऊपर उठते हैं, और वे ही अपने लोगों को - वे चाहे जिन परिस्थितियों में रहते हो - ऊपर उठाने में मदद करते हैं।

भारत की मुक्ति, इसलिए, व्यक्ति की शक्ति पर और प्रत्येक व्यक्ति के अपने भीतर के ईश्वरत्व के ज्ञान पर निर्भर है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book