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धर्म एवं दर्शन >> सूक्तियाँ एवं सुभाषित

सूक्तियाँ एवं सुभाषित

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :95
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9602

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अत्यन्त सारगर्भित, उद्बोधक तथा स्कूर्तिदायक हैं एवं अन्यत्र न पाये जाने वाले अनेक मौलिक विचारों से परिपूर्ण होने के नाते ये 'सूक्तियाँ एवं सुभाषित, विवेकानन्द-साहित्य में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।


59. जब तक भौतिकता नहीं जाती, तब तक आध्यात्मिकता तक नहीं पहुँचा जा सकता।

60. गीता का पहला संवाद रूपक माना जा सकता है।

61. जहाज छूट जाएगा इस डर से, एक अधीर अमेरिकन भक्त ने कहा ''स्वामीजी, आपको समय का कोई विचार नहीं।'' स्वामीजी ने शान्तिपूर्वक कहा, ''नहीं तुम समय में जीते हो, हम अनन्त में!''

62. हम सदा भावुकता को कर्तव्य का स्थान हड़पने देते हैं, और अपनी श्लाघा करते हैं कि सच्चे प्रेम के प्रतिदान में हम ऐसा कर रहे हैं।

63. यदि त्याग की शक्ति प्राप्त करनी हो, तो हमें संवेगात्मकता से ऊपर उठना होगा। संवेग पशुओं की कोटि की चीज है। वे पूर्णरूपेण संवेग के प्राणी होते हैं।

64. अपने छोटे बच्चों के लिए मरना, कोई बहुत ऊँचा त्याग नहीं। पशु वैसा करते हैं; ठीक जैसे मानवी माताएँ करती हैं। सच्चे प्रेम का वह कोई चिह्न नहीं; वह केवल अन्ध भावना है।

65. हम हमेशा अपनी कमजोरी को शक्ति बताने की कोशिश करते हैं, अपनी भावुकता को प्रेम कहते हैं, अपनी कायरता को धैर्य, इत्यादि।

66. जब अहंकार, दुर्बलता आदि देखो, तो अपनी आत्मा से कहो : 'यह तुम्हें शोभा नहीं देता। यह तुम्हारे योग्य नहीं।'

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