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कविता संग्रह >> उजला सवेरा

उजला सवेरा

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :96
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9605

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आज की पीढ़ी को प्रेरणा देने वाली कविताएँ


प्रकृति

प्रकृति
मेरा तेरे साथ
संबंध है अजीबो-गरीब।
ना तुझे माता कह सकता
ना तुझे कह सकता प्रेमिका
ना तुझे बहन मैं कह सकता
ना तुझे कह सकता प्रियतमा।
तुझे क्या कहूं बता मैं
कुछ भी कहना लगता है अजीब।
प्रकृति
मेरा तेरे साथ
संबंध है अजीबो-गरीब।
हार थक  कर जब मैं
आता हूं तुम्हारे पास
तब तुम बन कर प्रेमिका
बढ़ाती हो मेरा साहस
बंधाती हो एक नई आश
मिली है तुमसे ही तहजीब।

प्रकृति
मेरा तेरे साथ
संबंध है अजीबो-गरीब।
जब हो जाता जीवन पथ भ्रष्ट
आ खड़ी होती हो बन मां
नई स्फूर्ति भर जीवन में
देती हो आंचल की छांव
दिखला कर फिर मंजिल मेरी
नया संचार करती हो दाखिल।

प्रकृति
मेरा तेरे साथ
संबंध है अजीबो-गरीब।
और जब आता है रक्षा बंधन
लेकर अपना हरा रक्षा सूत्र
बहन बन कर खुद तुम मेरी
लंबी आयु की करती हो कामना
देती हूं वचन मैं तुमसे
सदा रहोगी मुझसे तुम रक्षित।

प्रकृति
मेरा तेरे साथ
संबंध है अजीबो-गरीब।
और कभी आये दौर जो ऐसा
विपरीत हो जो बिल्कुल मेरे
तब तुम बनकर मेरी प्रियतमा,
अन्दर साहस जगाती हो मेरे
देती हो तुम एक नई प्रेरणा
तभी तो मानता हूं तुम्हें अजीज।

प्रकृति
मेरा तेरे साथ
संबंध है अजीबो-गरीब।

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