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कविता संग्रह >> उजला सवेरा

उजला सवेरा

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :96
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9605

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आज की पीढ़ी को प्रेरणा देने वाली कविताएँ


उसकी याद

रह-रह कर खुले आसमान में
बिजली-सी कौंध जाती है ,
अकेले बैठे सुनसान जंगल में
मुझे वो भूली-सी याद आती है।

होंठो का वो लालीपन
पतली कमर चंचल चितवन
बहकी हिरणी हर्षित मन
मिले थे जब हमारे मन ,
वो यादें मन चित्रपट पर
फिर से दौड़-दौड़ आती हैं।
अकेले बैठे सुनसान जंगल में
मुझे वो भूली-सी याद आती है।

यूं वो सजधज कर आना
आते ही थोड़ा मुस्कुराना
फिर मुझसे हाथ मिलाना
कान में धीरे से यूं कहना
ले चलो दूर दूसरे जहां में
ऐसी प्रेम हिलोरें भिगो जाती हैं।
अकेले बैठे सुनसान जंगल में
मुझे वो भूली-सी याद आती है।

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