कविता संग्रह >> उजला सवेरा उजला सवेरानवलपाल प्रभाकर
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आज की पीढ़ी को प्रेरणा देने वाली कविताएँ
चांदनी
चांद की चांदनी आजउतरी है मेरे आंगन में
मन मेरा झूम उठा है ,
पांव मेरे थिरकने लगे।
कंपित रोएं-रोएं में
सितार जैसे बजने लगा
सातों सुर समेट लाई
पूर्व से आने वाली हवा
मन मेरा झूम उठा है ,
पांव मेरे थिरकने लगे।
चुनरी आसमान सिर ओढ़े
सुन्दर प्यारे सितारे जडक़र
लेकर ठंडी सुघड़ शीतलता
और सुगंध अंदर अपने भर
चंचल अस्थिर बहकी सी
सुवाषित लगी सांसों को करने।
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