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कविता संग्रह >> उजला सवेरा

उजला सवेरा

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :96
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9605

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आज की पीढ़ी को प्रेरणा देने वाली कविताएँ

 

अन्दर का कवित्व

एक बार मेरे अन्दर का कवित्व
ऑफिस के अन्दर जाग गया।
मैं लगा सुनाने अपनी कविता
सुन कविता मेरा अधिकारी भाग गया।

शायद उन पंक्तियों में ही
कुछ राज की बात थी
या तो कविता अच्छी न थी
या बात कोई ओर थी।

दूसरे दिन जब आया अधिकारी
मैनें पूछा महोदय जी
कल आपको हुआ था क्या
क्या मेरी पंक्तियों में
कोई रस न था।

तब फिर अधिकारी कहने लगा
नहीं-नहीं भाई आपकी पंक्तियों से तो
रस बहुत टपक रहा था
मगर कमबख्त बीवी का
मुझे सेक्रेटरी में दर्शन हुआ।

राज की बात की है ये
कहना ना किसी दूसरे से
निकल कर आया हूं आज
मेरे कैबिन की कुर्सी से।

याद है मुझे बीवी का
वो भंयकर रूप
एक हाथ में बेलन था
और एक हाथ में था जूस,
पहले पिलाती है जूस मुझे
फिर पीटती है बेलन से।

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