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कविता संग्रह >> उजला सवेरा

उजला सवेरा

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :96
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9605

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आज की पीढ़ी को प्रेरणा देने वाली कविताएँ

 

शादी

१५ जनवरी की शादी थी
मैं भी वहां पर गया
वहां का नजारा मुझे
कुछ इस कदर भा गया,
एक पल के लिए मुझे
कुछ ऐसा महसूस हुआ
मानों मैं स्वर्ग में आ गया।

जिस दरवाजे से
अन्दर घुसा मैं
वहां लिखा था एंट्री
लम्बा रास्ता था कुछ ऐसा
मेट बिछा था संकरी
२०-२५ फुट लम्बे रास्ते पर
ऊपर-नीचे दाएं और बांए
चांदनी का विशेष प्रबन्ध था
अन्दर खड़े लोग अपने हाथों में
लेकर सेंट खड़े थे।

कुछ अन्दर पहुंचकर
कन्यादान लिखाया
फिर पहुंचे खाने के लिए
खाने वाले प्लेस का
क्या मुझे सीन लगा
चारों तरफ  खाली जगह
चारों तरफ  टेंट था
कुछ जलेबी और रबड़ी
लेकर मैं खाने लगा।

उस भव्य प्लेस में
खाने को सभी कुछ था।

थोड़ा-थोड़ा खाकर भी
पेट बिल्कुल डन हुआ
पेट भरने के बाद मैं
चारों तरफ  देखने लगा।

मुझे वहां महसूस हुआ
हां, यहां स्वर्ग और नरक
दोनों का दर्शन हुआ।
एक तरफ  जो वह
लिख रहा था कन्यादान
लग रहा था वह मुझे
साक्षात यम भगवान।

फिर दूसरे कोने में
लगा रखी थी चाय-काफी
ठंडा और पानी ,
एक दूसरे कोने में ही
सब्जी के दोणों के नीचे
जला रखी थी भट्टी,
ताकि सब्जी गरम रहे।

तीसरे कोने में जो देखा
इन्द्र का दरबार सजा था
जहां पर वर-वधू का
लोग दर्शन करके
अपना खाना खाने लगे।

वर-वधू का मुंह ऊधर था
जिधर डी0जे0 चल रहा था
वहां मस्ती में अर्धनग्र
अप्सराएं नाच रही थी।

खुशी का वह माहौल था
चारों तरफ  चहल-पहल थी
लोग सारे झूम रहे थे
विडियो रील चल रही थी।

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