कविता संग्रह >> उजला सवेरा उजला सवेरानवलपाल प्रभाकर
|
7 पाठकों को प्रिय 26 पाठक हैं |
आज की पीढ़ी को प्रेरणा देने वाली कविताएँ
गरीब की आंखें
मलिन सा चेहरागिरती उठती होले-होले
तन पर फटे हुए कपड़े
जरूर ये आंखें
किसी गरीब की हैं।
गरीबी की अकड़ ने
तोड़ कर रख दिए कंधे
टेढे मेढे बिखरे बाल
निस्तेज निष्ठूर गोले गाल
गड्ढों में धंसती हुई सी।
जरूर ये आंखें
किसी गरीब की हैं।
लक्ष्य बिंदु पर अटकी सी
ज्यों दे रही हो चुनौती
हर तूफां से लडऩे की
सहमी दुख झेलने वाली
जरूर ये आंखें
किसी गरीब की हैं।
0 0 0
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book