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कविता संग्रह >> उजला सवेरा

उजला सवेरा

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :96
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9605

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आज की पीढ़ी को प्रेरणा देने वाली कविताएँ


गरीब की आंखें

मलिन सा चेहरा
गिरती उठती होले-होले
तन पर फटे हुए कपड़े
जरूर ये आंखें
किसी गरीब की हैं।

गरीबी की अकड़ ने
तोड़ कर रख दिए कंधे
टेढे मेढे बिखरे बाल
निस्तेज निष्ठूर गोले गाल
गड्ढों में धंसती हुई सी।
जरूर ये आंखें
किसी गरीब की हैं।

लक्ष्य बिंदु पर अटकी सी
ज्यों दे रही हो चुनौती
हर तूफां से लडऩे की
सहमी दुख झेलने वाली
जरूर ये आंखें
किसी गरीब की हैं।

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