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कविता संग्रह >> उजला सवेरा

उजला सवेरा

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :96
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9605

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आज की पीढ़ी को प्रेरणा देने वाली कविताएँ

 

मेरा जीवन

खेत की पगडंडियों पर
उगी हुई हरी घास पर
पड़ी हुई ओंस की बूंदे
ज्यों.....
बनती और सिमट जाती है
हे प्रभू दया करो मुझ पर
ऐसा क्षण भंगुर जीवन देकर
जैसे ओस कुछ देर के लिए
लेती है जन्म और फिर
जन्म की भांति ही
मिट जाती है।
पर उसकी अमिट हस्ती
मिटकर भी नहीं मिट पाती है।
आखिर वह अमिट चमक
मन पर छाप छोड़ जाती है।

चाहे जीवन छोटा हो पर
छाप ऐसी होनी चाहिए
चमक मोती सी आए मुझमें,
तेरे सहारे मैं लटकूं
दुखों की बयार चाहे चलें
पर तुझसे मैं ना छूटूं
चाहे धूप खिले या प्रभू
चाहे कोई बादल आए
मैं तनिक भी ना घबराऊं
दीये की लौ की भांति
मैं कभी ना टिमटिमाऊं
एक जगह पर रहूं अड़ा
कभी ना मैं डगमगाऊं
मर जाऊं मिट जाऊं
पर अपनी छाप
इस जग में
अमिट पत्थरों पर लिख जाऊं।

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