लोगों की राय

कविता संग्रह >> उजला सवेरा

उजला सवेरा

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :96
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9605

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

26 पाठक हैं

आज की पीढ़ी को प्रेरणा देने वाली कविताएँ

 

सहारा

आज का मानव
कितना बेबस हो चुका है
कदम-दो-कदम चलने में भी।

उसे किसी...... 
सहारे की जरूरत है,
सहारा किसी
मानव का नहीं
और न किसी जीव का
सहारा चाहिए तो बस
मानव द्वारा निर्मित
किसी मशीन का ।

कदम जमीन पर रखना
मानव को गंवारा नहीं
हम वहीं मानव हैं
जो कभी
रहते थे जीवों पर निर्भर।

मानता हूं
पहले भी कभी
हमारे पुरखों ने,
कहने को हम उनके
वंशज हैं,
कभी जमीं पर
पैर उन्होंने रखे नहीं,
घूमते थे पेड़ों पर
सोते थे पेड़ों पर
रहते थे पेड़ों पर,

पर उन्हें
इस भूमि से
बे-इंतहा प्रेम था
धरती पर पैर
रखने से पहले
कई बार इसे चूमते थे।

पर आज का इंसान
इसके हृदय को
रौंदता हुआ
अपने स्वार्थ को पूरा कर
आगे बढ़ जाता है।

धरती का हृदय
करूणा से ओत-प्रोत
पानी-पानी  हो जाता है।

0 0 0

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book