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यादें

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9607

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बचपन की यादें आती हैं चली जाती हैं पर इस कोरे दिल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।



बावरी गोपी


कौन नगरिया, कौन डगरिया
श्याम तोहे ढूंढे, राधा बावरिया।

मथुरा, वृदावन, गोकुल
ढूंढा श्याम तोहे ब्रज में
तोहे पाने गई मैं अकेली
उस यमुना के तट पे
दर्शन दो ओ नन्द के लाला
भई हूँ मैं अजब दुखैया।
कौन नगरिया, कौन डगरिया
श्याम तोहे ढूंढे, राधा बावरिया।

पूरे वृंदावन में मैं घुमी
पाने को तोरी मैं रज धूली
मगर अंत में ना पाके तोहे
बैठी एक कदम की डारि
यमुना तट पर ना मिले कन्हैया।
कौन नगरिया, कौन डगरिया
श्याम तोहे ढूंढे, राधा बावरिया।

तट यमुना का सूना - सूना
सारा ब्रज मोहे लागै धूना
कन्हाई तोरि लीला ये कैसी
जो आज कहीं भी न होती
कैसी रास श्याम तुम हो रचैया।
कौन नगरिया, कौन डगरिया
श्याम तोहे ढूंढे, राधा बावरिया।

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