उपन्यास >> देहाती समाज देहाती समाजशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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ग्रामीण जीवन पर आधारित उपन्यास
'वह ठीक है, लेकिन इस तरह जो झूठी बदनामी उड़ सकती है, उसकी ढाल तो वह बन सकती थी, रानी! रात भी काफी हो गई!'
रमेश बचपन में रमा को इसी नाम से पुकारता था। अपने उसी पुराने संबोधन को सुन कर रमा आत्मविभोर हो उठी, पर संयत हो कर बोली-'वह भी बेकार ही होता, रमेश भैया! उजली रात है, अकेली ही जा सकती हूँ।'
और बिना किसी बात की प्रतीक्षा किए, रमा वहाँ से चली गई।
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