उपन्यास >> देहाती समाज देहाती समाजशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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ग्रामीण जीवन पर आधारित उपन्यास
सुनते ही वेणी का सारा गुस्सा काफूर हो गया और मारे भय के पीला पड़ गया उनका चेहरा।
'आप जरा होशियारी से रहें, बड़े बाबू! मैं झूठ नहीं कहता, दुर्गा माई के सामने बैठा हूँ। कहीं रात-बिरात बाहर न निकलिएगा! कहाँ कब कौन बैठा हो, कहा नहीं जा सकता!'
वेणी ने कुछ कहना चाहा, पर जुबान न खुली मारे भय के।
अब रमा बोली-'सनातन, तुम लोगों की नाराजगी शायद छोटे बाबू के ही कारण है?'
दुर्गा की मूर्ति की तरफ देख कर सनातन ने कहा-'बात तो ऐसी ही है! झूठ बोल कर नरक का भागी नहीं बनूँगा। मुसलमान तो छोटे बाबू को हिंदुओं का देवता मानते हैं। बस पूछिए मत, उनको गुस्सा बहुत ज्यादा है, प्रमाण भी मौजूद है आपके सामने। जफर अली से भला कभी किसी को आशा थी, एक पैसे की? लेकिन उसी ने-जिस दिन छोटे बाबू को सजा सुनाई गई-स्कूल को एक हजार रुपए दान दिए हैं। मैंने तो यहाँ तक भी सुना है कि मस्जिद में छोटे बाबू के लिए नमाज पढ़ कर दुआ माँगी जाती है!'
सनातन की बात सुन कर रमा का दिल खिल उठा और आनंद से चमकती आँखों से वह सनातन की तरफ देखती रही।
सहसा सनातन का हाथ पकड़ कर वेणी ने कहा -'तुम जरा थाने चल कर दारोगा जी के सामने यह बात कह दो, सनातन! मैं तुम्हें मुँह-माँगा इनाम दूँगा! दो बीघे जमीन माँगोगे, तो वह भी तुम्हें दूँगा, देवता के सामने कसम खा कर यह वचन देता हूँ।'
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