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उपन्यास >> देहाती समाज देहाती समाजशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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ग्रामीण जीवन पर आधारित उपन्यास
सनातन चकित दृष्टि से वेणी के मुँह की तरफ देखता रहा, बोला-'अब मैं बुढ़ापे में, लालच में आ कर यह नीच काम करूँ, बड़े बाबू? मरने पर मेरा मुरदा उठाना तो अलग रहा, ठोकर मारने भी कोई पास न फटकेगा! छोटे बाबू ने तो जमाना ही उलट दिया है, अब पहले दिनों के सपने मत देखो, बड़े बाबू!'
'तो तू एक ब्राह्मण की बात टालेगा, क्यों?'
'अगर मैंने कुछ कहा तो आप बिगड़ खड़े होंगे, गांगुली जी। उस दिन पीरपुर के स्कूल में छोटे बाबू ने कहा था-सिर्फ जनेऊ पहन लेने भर से ही कोई ब्राह्मण नहीं बन जाता! आपकी नस-नस से जानकार हूँ मैं! जिंदगी देखते ही देखते कट गई है, आपकी करतूतें!! आपकी करनी क्या ब्राह्मणों को शोभा देती है! तुम्हीं कहो बहन! मैं झूठ कह रहा हूँ?'
रमा निरुत्तर रही। उसका सिर झुक गया।
सनातन बोला-'छोटे बाबू जब से जेल गए हैं, तभी से जफर अली की चौपाल पर, रोज शाम को दोनों गाँवों के नौजवान लड़के जमा होते हैं, खुलेआम वे कहते-फिरते हैं कि असली जमींदार तो छोटे बाबू ही हैं-बाकी तो सब उचक्के हैं! डरना किस बात का? ब्राह्मण का-सा आचरण करें, तो हम उन्हें ब्राह्मण भी मान सकते हैं। नहीं तो हममें और उनमें अंतर ही क्या है?'
वेणी ने उदास मुँह से कहा-'वे हम पर इतने नाराज क्यों हैं, सनातन, इसका कारण बता सकते हो?'
'माफ कीजिए, बड़े बाबू! अब उनसे यह बात छिपी नहीं रही है कि इन सब खुराफातों की जड़ में आप ही हैं!!'
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