उपन्यास >> देहाती समाज देहाती समाजशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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ग्रामीण जीवन पर आधारित उपन्यास
'मेरी समझ में तो, बड़े भैया भी उसी का फल भोग रहे हैं! पर क्या तुम मुझे क्षमा कर सकोगी, ताई जी?'
विश्वेझश्व री ने रमा का माथा चूमते हुए कहा-'मैं माफ न करूँगी तो कौन करेगा! बल्कि इसके लिए तो ईश्व र तुम्हारे ऊपर अनेक कृपा करें, यह आशीर्वाद देती हूँ।'
आँसू पोंछते हुए रमा ने कहा-'अब तो उनके प्रयत्न सफल हो गए! उनके देश के गरीब किसानों में जागृति हो गई है। उन्हें भी वे अब अच्छी तरह पहचान कर, अपने से भी ज्यादा प्यार करने लगे हैं। पर क्या वे इस खुशी में मुझे क्षमा न करेंगे, ताई जी?'
विश्वेाश्वीरी के मुह से कोई शब्द न निकला। आँखों से दो बूँदें अवश्य टपक कर रमा के माथे पर जा गिरीं। काफी देर तक मौन रह कर रमा ने कहा-'ताई जी।'
'कहो।'
'हम दोनों ही ने तुमको प्यार किया, बस इसी से हम दोनों साथी बन सके!'
विश्वे श्वेरी ने फिर उसका माथा चूम लिया। रमा बोली-'अपने इसी प्यार के जोर पर तुमसे कहती हूँ कि ताई जी, जब मैं इस संसार में न रहूँ और तब भी वे मुझे क्षमा न कर सकें, तो तुम मेरी ओर से इतना कह देना कि मैंने उन्हें जितनी वेदना पहुँचाई है, मैं भी उससे कम वेदना में नहीं जली हूँ। और जितनी बुरी उन्होंने मुझे समझ रक्खा है, कम से कम उतनी बुरी तो मैं नहीं थी!'
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