उपन्यास >> देहाती समाज देहाती समाजशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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ग्रामीण जीवन पर आधारित उपन्यास
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कैलाश हज्जाम और मोतीलाल दोनों ही, अपने झगड़े का निबटारा करने के लिए रमेश के पास अपने सारे कागजात और अपने-अपने पक्ष के सबूत लेकर आए। वे अदालत न जा कर रमेश के पास आए थे, यह देख कर रमेश को अत्यंत विस्मय और नए जागरण का आह्लाद हुआ। रमेश ने उनसे पूछा-'तुम लोग मानोगे भी मेरा फैसला?'
दोनों ने वायदा किया कि जरूर मानेंगे-'भला आपमें और उस हाकिम में, जो अदालत में बैठ कर फैसला करता है, अंतर ही क्या है? जो इल्म आपने पाया है, वही तो उन्होंने भी पाया होगा! जैसे आप भले घर के हैं, वैसे ही वे भी होंगे-और फिर अगर आप ही हाकिम बन कर आ जाएँ, तो आपका फैसला उस हालत में मानना ही होगा हम लोगों को। तो फिर अभी क्यों न मानेंगे?'
रमेश तो मारे आनंद के विभोर हो उठा।
'हम दोनों ही आपको अपने-अपने पक्ष की बात साफ-साफ कह सकेंगे। अदालत में तो वैसे सच कह नहीं सकते। और फिर वहाँ जा कर तो वकीलों का मुँह रुपयों से भरना होता है। यहाँ तो वैसे ही न्याय होगा। कुछ तवालत भी न उठानी होगी। हम जरूर मानेंगे आपका फैसला, चाहे वह किसी के पक्ष में हो! भगवान की कृपा से हम सबकी समझ में सब बातें आ गई हैं! तभी अदालत को ठुकरा कर आपके पास आए हैं।'
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