उपन्यास >> देहाती समाज देहाती समाजशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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ग्रामीण जीवन पर आधारित उपन्यास
अपने साथ लाए सारे कागजात उन्होंने रमेश के हाथ में रख दिए। एक नाले के संबंध में उन दोनों का झगड़ा था। सुबह न्याय सुनने आने को कह कर, दोनों ही चले गए। रमेश अभिभूत बैठा रहा। उसे आशा भी न थी कि इन अशिक्षितों में इतनी सुबुद्धि आ गई है। अब चाहे वे लोग उसका फैसला भले ही न मानें, लेकिन अदालत को ठुकरा कर उनके पास ये लोग आए हैं, यही क्या कम बात है? इसको सोच-सोच कर उसका हृदय प्रसन्नता से भर उठा। वैसे तो मामला बहुत मामूली-सा था, पर उनके इस बुद्धि परिवर्तन ने उसे बड़ा महत्व प्रदान कर दिया और रमेश उसके सहारे स्वदेश के भविष्य की सुहावनी तस्वीर की कल्पना कर, उसमें ही आत्मविभोर हो उठा। सहसा रमा उनके स्मृति पटल पर अनायास ही आ गई। अगर और किसी दिन इस प्रकार उसकी याद आई होती, तो उनका मन गुस्से से अभिभूत हो उठता, पर आज उनका मन अत्यंत शांत रहा। मन ही मन प्रफुल्लित हो बोला-'काश, तुम यह जान पातीं रमा, कि तुम्हारा विरोध, द्वेष और विष ही आज मेरे लिए अमृत बन उठा है और वही मेरे जीवन की धारा को बदल कर, मेरे सारे स्वप्नों को सार्थक बना देगा तो विश्वाास करता हूँ कि तुम कभी मुझे जेल न भेजना चाहतीं!'
'कौन है?' आहट पा कर उन्होंने पूछा।
'मैं हूँ राधा, छोटे बाबू, रमा बहन ने आपसे कहलाया है कि वे जाते वक्त आपसे मिल कर जाना चाहती हैं!'
रमेश सुन कर विस्मय में पड़ गया। रमेश को मिलने के लिए बुलाने को रमा ने दासी भेजी है? आज यह कैसी-कैसी अप्रत्याशित घटनाएँ घटित हो रही हैं?
'अगर एक बार आप दया करें, छोटे बाबू!'
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