उपन्यास >> देवदास देवदासशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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कालजयी प्रेम कथा
यह कहकर एक दीर्घ निःश्वास लेकर कहा-'तुममें न जाने कैसा एक आकर्षण है कि उसे जान सकता है, जिसने तुम्हें प्यार किया है। इस स्वर्ग के पाने की इच्छा करके फिर कौन मुड़ सकता है, ऐसी स्त्री इस पृथ्वी पर कौन है?'
और कुछ क्षण नीरव रहने के बाद उसने मुख की ओर देखकर कहा-यह रूप सिर्फ चार दिन की चांदनी है। देखते-देखते ही इसका अन्त हो जाता है और चिता के साथ अग्नि में भस्म होकर राख हो जाता है।'
देवदास ने विह्वल दृष्टि से चन्द्रमुखी के मुख की ओर देखकर कहा-'आज तुम यह सब क्या बक रही हो ?' चन्द्रमुखी ने मधुर हंसी हंसकर कहा-'इससे बढ़कर और कोई मन को उबाने वाली बात नहीं होती देवदास, कि जिसे हम प्यार न करें वही बलपूर्वक प्रेम की बातें सुनाए। लेकिन मैं यह सिर्फ पार्वती के लिए वकालत करती हूं, अपने लिए नहीं।'
देवदास ने चलने को उद्दत होकर कहा-'अब मैं चलूंगा।'
'थोड़ा और बैठो। कभी तुमको संज्ञान नहीं पाया था-कभी इस तरह दोनों हाथ पकड़कर बातचीत नहीं कर सकी थी-यह कैसी तृप्ति है!'- कहकर वह हठात् हंस पड़ी।
देवदास ने आश्चर्य से पूछा- हंसी क्यों?'
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