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उपन्यास >> देवदास

देवदास

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :218
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9690

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कालजयी प्रेम कथा


'क्यों मारा है?'

पार्वती ने इस बार भी कुछ नहीं कहा। मुखोपाध्याय महाशय ने समझा कि किसी कुसूर पर मारा है, लेकिन इस तरह मारना उचित नहीं। प्रकट में भी यही कहा। पार्वती ने पीठ खोलकर कहा-'यहां भी मारा है।'

पीठ के दाग और भी स्पष्ट तथा गहरे थे। इस पर वे दोनों ही बड़े क्रोधित हुए। पंडितजी को बुलाकर कैफियत तलब की जाएगी।' मुखोपाध्यायजी ने यही अपनी राय जाहिर की। इस प्रकार स्थिर हुआ कि ऐसे पंडित के निकट लड़के-लड़कियों को भेजना उचित नहीं।

यह निश्चित सुनकर पार्वती प्रसन्नतापूर्वक दादी की गोद में चढ़कर घर लौट आयी। घर पहुंचने पर पार्वती माता की जिरह में पड़ी। उन्होंने बैठकर पूछा-'क्यों मारा है?'

पार्वती ने कहा-'झूठ-ही-मूठ मारा है।'

माता ने कन्या का कान खूब जोर से मलकर कहा-'झूठ-मूठ कोई मार सकता है?'

उसी समय दालान से सास जा रही थीं, उन्होंने घर की चौखट के पास आकर कहा-'बहू, मां होकर भी तुम झूठ-मूठ मार सकती हो और वह निगोड़ा नहीं मार सकता?'

बहू ने कहा-'झूठ-मूठ कभी नहीं मारा है। बड़ी भली लड़की है, जो कुछ नहीं किया और उन्होंने मारा!'

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