उपन्यास >> देवदास देवदासशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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कालजयी प्रेम कथा
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आज दो वर्ष हुए चन्द्रमुखी ने अपने रहने के लिए अशथझूरी गांव में छोट नदी के तीर पर एक ऊंची जगह में दो छोटे-छोटे मिट्टी के घर बनाये हैं। पास ही में एक खलियान है, वहां पर उसकी एक हृष्ट-पुष्ट काली गाय बंधी रहती है। दो घरों में, एक रसोईघर और भंडार है तथा दूसरे में वह सोती है। सोकर उठने से पहले ही रामवाग्दी की स्त्री सब घर-द्वार झाड़-बुहारकर साफ कर देती है। मकान के चारों ओर सहन बना है, बीच में एक बेर का पेड़ है और एक ओर एक तुलसी की चौतरिया है। सामने नदी की धार है, उसके आस-पास लोगों ने खजूर और केले आदि के वृक्ष लगा रखे हैं। चन्द्रमुखी को छोड़, इस घाट का उपयोग और कोई नहीं करता। वर्षा-काल में नदी के फनफनाने पर चन्द्रमुखी के मकान के नीचे तक जल आ जाता है। उस समय लोग व्यग्र हो उठते हैं और कुदाली से मिट्टी खोदकर जगह को ऊंची बनाने के लिए दौड़ आते हैं। गांव मे ऊंची जाति के लोग नहीं रहते। किसान अहीर कहार कुर्मी, वाग्दी, दो घर कलवार और दो घर चमार रहते हैं। चन्द्रमुखी ने गांव में आकर देवदास को सूचना दी; उत्तर में उन्होंने कुछ और रुपये भेज दिये। इन रुपयों में से चन्द्रमुखी गांव के लोगों को उधार देती है। आपद-विपद में सभी आकर उससे रुपया उधार ले जाते हैं। चन्द्रमुखी सूद नहीं लेती, उसके बदले कन्द-मूल, शाक-भाजी, जिसकी जो इच्छा होती है, दे जाता है। अमल के लिए भी किसी से जोर-जबरदस्ती नहीं करती। जो नहीं दे सकते, वे नहीं देते।
चन्द्रमुखी हंसकर कहती-'अब तुझे कभी न दूंगी।'
वह नम्र भाव से कहता-'मां, ऐसा आशीर्वाद दो कि इस बार अच्छी फसल हो।'
चन्द्रमुखी आशीर्वाद देती; किन्तु यदि फिर अच्छी फसल न होती तो वे फिर रोते हुए आकर हाथ पसारते और चन्द्रमुखी फिर देती। मन-ही-मन हंसकर वह कहती- वे अच्छी तरह से रहें, मुझे रुपये-पैसे की क्या कमी है।
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