उपन्यास >> देवदास देवदासशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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कालजयी प्रेम कथा
किन्तु वे कहां हैं? प्राय: छ: महीने हुए उसे कोई खबर नहीं मिली। चिट्ठी लिखी, किन्तु कोई जवाब नहीं मिला। रजिस्ट्री लगायी, वह लौट आयी। चन्द्रमुखी ने एक ग्वाले को अपने घर के पास बसा रखा था। उसके लड़के के विवाह में साढे दस गंडे रुपये से सहायता दी थी; एक जोड़ा कड़ा भी खरीद दिया। उसका सारा परिवार चन्द्रमुखी का आश्रित और आज्ञाकारी था। एक दिन प्रातःकाल चन्द्रमुखी ने भैरव ग्वाला को बुलाकर कहा-'भैरव, यहां से तालसोनापुर कितनी दूर है, जानते हो?'
भैरव ने सोचकर कहा-'यहां से कोई दो धाप पर कचहरी है।'
चन्द्रमुखी ने पूछा-'वहां पर जमीदार रहते हैं?'
भैरव ने कहा-' हां, वे भारी जमीदार हैं। यह गांव भी उन्हीं का है। आज तीन वर्ष हुए, उनका स्वर्गवास हो गया। उनके श्राद्ध में सारी प्रजा ने एक महीने तक पूरी तरकारी खायी थी। अब उनके दो लडके है; वे लोग बहुत भारी आदमी हैं - राजा हैं।'
चन्द्रमुखी ने पूछा-'भैरव, तुम मुझे वहां तक पहुंचा सकते हो?'
भैरव ने कहा-'क्यों नहीं पहुंचा सकता; जिस दिन इच्छा हो, चलो।'
चन्द्रमुखी ने उत्सुक होकर कहा-'तब चलो न भैरव, मैं आज ही चलूंगी।'
भैरव ने विस्मित होकर कहा-'आज ही?'
फिर चन्द्रमुखी के मुख की ओर देखकर कहा-'तो तुम जल्दी से रसोई-पानी से निबट लो और मैं भी तब तक थोड़ी फरूही बांधकर आता हूं।'
चन्द्रमुखी ने कहा-'आज मैं रसोई करूंगी नहीं। भैरव तुम फरूही लेकर आओ।'
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