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उपन्यास >> देवदास

देवदास

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :218
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9690

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कालजयी प्रेम कथा


पार्वती ने थोड़ा हंसकर उसके मुख की ओर देखकर कहा-'क्यों?'

'बड़ी चोट लगी न पारो?'

पार्वती ने सिर हिलाकर कहा-'हूं!'

'तुम क्यों ऐसा करती हो? इसी से तो क्रोध आता है और इसीलिए मारता भी हूं।'

पार्वती की आँखों में जल भर आया। मन में आया कि पूछे कि क्या करे परंतु पूछ नहीं सकी।

देवदास ने उसके माथे पर हाथ रखकर कहा-'अब ऐसा कभी नहीं करना- अच्छा!'

पार्वती ने सिर हिलाकर कहा-'नहीं करूंगी।'

देवदास ने और बार पीठ ठोककर कहा-'अच्छा, तब मैं कभी तुमको नहीं मारूंगा।'

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