उपन्यास >> देवदास देवदासशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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कालजयी प्रेम कथा
देवदास इस बात का जवाब नहीं दे सके।
गाड़ी चलने लगी, पर दस बजे नहीं पहुंची। लगभग बारह बजे रात को गाड़ी हाथीपोता के जमीदार के मकान के सामने पीपल के पेड़ के नीचे आकर खड़ी हुई। गाड़ीवान ने बुलाकर कहा-'बाबू, नीचे उतरिये।'
कोई उत्तर नहीं मिला। तब उसने डरकर मुंह के पास दीया लाकर देखा, कहा-'बाबू, क्या सो गये हैं?'
देवदास देख रहे थे, होंठ हिलाकर कुछ कहा, किन्तु कोई शब्द नहीं हुआ। गाड़ीवान ने फिर बुलाया- 'बाबू! '
देवदास ने हाथ उठाना चाहा, किन्तु उठा नहीं सके। केवल दो बूंद आंसू उनकी आंखों के कोण से बाहर ढुलक पड़े। गाड़ीवान ने तब अपनी बुद्धि के अनुसार बांसों को बांधकर एक पलंग बनाया, उसी पर बिस्तर बिछाकर बडे कष्ट से देवदास को लाकर सुला दिया। बाहर एक मनुष्य भी दिखायी नहीं पड़ता था। जमीदार के घर में सब लोग सो रहे थे। देवदास ने अपनी जेब से बड़े कष्ट से सौ रुपये का एक नोट बाहर निकाला। लालटेन की रोशनी में गाड़ीवान ने देखा कि बाबू उसी की ओर देख रहे हैं, परन्तु कुछ कह नहीं सकते हैं। उसने अवस्था देखकर नोट लेकर चादर में बांध लिया। शाल से देवदास का सारा शरीर ढंका था, सामने लालटेन जल रही थी और पास में नया साथी गाड़ीवान था।
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